Not known Details About गणपति आरती
किसी भी देवी-देवता की आरती के बाद कर्पूरगौरम् करुणावतारम….मंत्र ही क्यों बोला जाता है –
आरती कीजै हनुमान लला की। दुष्ट दलन रघुनाथ कला की॥
कर के मध्य कमंडलु चक्र त्रिशूल धर्ता ।
रामायण के सुन्दर-काण्ड में हनुमान जी के साहस और देवाधीन कर्म का वर्णन किया गया है। हनुमानजी की भेंट रामजी से उनके वनवास के समय तब हुई जब रामजी अपने भ्राता लछ्मन के साथ अपनी पत्नी सीता की खोज कर रहे थे। सीता माता को लंकापति रावण छल से हरण करके ले गया था। सीताजी को खोजते हुए दोनो भ्राता ॠषिमुख पर्वत के समीप पँहुच गये जहाँ सुग्रीव अपने अनुयाईयों के साथ अपने ज्येष्ठ भ्राता बाली से छिपकर रहते थे। वानर-राज बाली ने अपने छोटे भ्राता सुग्रीव को एक गम्भीर मिथ्याबोध के चलते अपने साम्राज्य से बाहर निकाल दिया था और वो किसी भी तरह से सुग्रीव के तर्क को सुनने के लिये तैयार नहीं था। get more info साथ ही बाली ने सुग्रीव की पत्नी को भी अपने पास बलपूर्वक रखा हुआ था।
त्रिगुण रूपनिरखता त्रिभुवन जन मोहे ॥ ॐ जय शिव…॥
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वास्तव में प्रणव अक्षर (ॐ) में यह तीनों एक ही हैं।।
जो कोई तुमको ध्याता, ऋद्धि सिद्धि धन पाता
तुलसीदास और राघवेंद्र स्वामी की कहानियां, उन लोगों को हनुमान की करुणा और समर्थन का वर्णन कराती हैं जो
हम ब्रह्मा, विष्णु व सदाशिव को अविवेक के कारण अलग अलग देखते हैं।
कर्म प्रभाव प्रकाशिनी, भव निधि की त्राता
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